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अवा॒ कल्पे॑षु नः पुम॒स्तमां॑सि सोम॒ योध्या॑ । तानि॑ पुनान जङ्घनः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

avā kalpeṣu naḥ pumas tamāṁsi soma yodhyā | tāni punāna jaṅghanaḥ ||

पद पाठ

अव॑ । कल्पे॑षु । नः॒ । पुमः॑ । तमां॑सि । सो॒म॒ । योध्या॑ । तानि॑ । पु॒ना॒न॒ । ज॒ङ्घ॒नः॒ ॥ ९.९.७

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:9» मन्त्र:7 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:33» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सौम्यस्वभाव परमात्मन् ! आप (तमांसि) अज्ञानों को और जो (योध्या) युद्ध करने योग्य है (तानि) उनको (जङ्घनः) हनन करो (पुनान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (पुमः) हे पूर्ण पुरुष ! (नः) हमारी (कल्पेषु) सब अवस्थाओं में (अव) रक्षा करें ॥७॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य का परम शत्रु एकमात्र अज्ञान ही है, जो पुरुष अज्ञानरूपी शत्रु को नहीं जीतता, वह शूरवीर व विजयी कदापि नहीं कहला सकता, बहुत क्या, पुरुष में पुरुषत्व यही है कि वह अज्ञानरूपी शत्रु को जीतकर अभ्युदय और निःश्रेयसरूपी फलों को लाभ करे। इस अभिप्राय के लिये उक्त मन्त्र में अज्ञान के जीतने की परमात्मा से प्रार्थना की गई है और अज्ञानरूपी शत्रु की शत्रुता का वर्णन “पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्।” गीता के इस श्लोक में सुप्रसिद्ध है कि हे जीव तू ज्ञान और विज्ञान के नाश करनेवाले परम शत्रु अज्ञान का सबसे पहले नाश कर ॥७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सौम्यस्वभाव परमात्मन् ! भवान् (तमांसि) अज्ञानं (योध्या) ये च दुष्टयोद्धारः (तानि) तांश्च (जङ्घनः) हन्तु (पुनान) हे सर्वेषां पावयितः ! (पुमः) हे पूर्णपुरुष ! (नः) अस्मान् (कल्पेषु) सर्वदशासु (अव) रक्षतु ॥७॥